Friday, March 30, 2007

"यूँ कभी"

सोचो कभी ऐसा हो जाये
सब-वे कि सीङियों को चङते
तुम से नज़रें अटक जाये

(१)
क्या तुम देखकर भी
अनदेखा कर दोगे
या
लगा दोगे सवालों कि
झङियाँ
या
सब कुछ भूलकर
खो जाओगे इन
आँखों के घेरों मे

(२)
शायद ये मेरा
भ्रम होगा
कि तुम
गुज़रे थे
अभी यहीं से

कहाँ रहीं तुम
इतने दिन
क्या उन दिनों के
किसी भी पल ने
याद दिलाई मेरी

उन दिनों के
हर मंजर
आज भी
चमक रहे हैं
तुम्हारी आँखो में
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