याद है
मैं अक्सर
कहता था
मरते समय
तुम मेरे
पास ही रहना
शायद उन
अन्तिम पलों के
साथ से मुझे
स्वर्ग
नसीब हो जाये
और तुम
इस बात को
हवा में तैरते
झाग के
बुलबुले सा
हंसकर
टाल देती
सांसों कि
उन हर
आखिरी कङी मे
तुम्हें पुकारते
मेरी आत्मा
त्रस्त हो गई
आज भी मैं
कई पीपल के
पेङों पर
उलटा
लटका रहता हूँ
Friday, May 19, 2006
Wednesday, May 10, 2006
"मेरी एक अदद छत"
तुम
कितना बदल गये हो
मैं तो
बहुत खुश थी
बरसात मे टपकती
उस छत के नीचे भी
मुझे यकिन नहीं
क्या सच ??
ये सब
मेरी खुशी के लिये था
लेकिन
आज मेरे पास
सिर्फ मैं और तुम्हारी
ख्वाहिश वाली
छत ही तो है
मैं
क्या करू?
तुम दूर जाने लगे हो
उस रेल कि
पटरी कि तरह
जो मेरी खङी
जमीन से चौङी
और
दूर जाकर
एक
संकरे रस्ते में
बदल जाती है
कितना बदल गये हो
मैं तो
बहुत खुश थी
बरसात मे टपकती
उस छत के नीचे भी
मुझे यकिन नहीं
क्या सच ??
ये सब
मेरी खुशी के लिये था
लेकिन
आज मेरे पास
सिर्फ मैं और तुम्हारी
ख्वाहिश वाली
छत ही तो है
मैं
क्या करू?
तुम दूर जाने लगे हो
उस रेल कि
पटरी कि तरह
जो मेरी खङी
जमीन से चौङी
और
दूर जाकर
एक
संकरे रस्ते में
बदल जाती है
Wednesday, May 03, 2006
"तुम्हारा नाम"
सुनो!
मैं उन
ऊँची वादियों के
बीच तुम्हारा
नाम पुकारना
चाहती हूँ
जहाँ से
वो आवाज़
हर वादी-पहाङ
से टकराकर तुम्हें
कई बार सुनाई दे
मैं उन
ऊँची वादियों के
बीच तुम्हारा
नाम पुकारना
चाहती हूँ
जहाँ से
वो आवाज़
हर वादी-पहाङ
से टकराकर तुम्हें
कई बार सुनाई दे
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