Thursday, April 10, 2008

दुविधा

माँ से कहती रही कई बार क्या जरुरी है हल्दी रोली के बंधन में बंधकर जिन्दगी बिताना माँ समझाती लाडो ये जरुरी नहीं लेकिन दुनिया कि रीत है, सभी बेटियाँ अपना घर बसाती हैं, और एक ना एक दिन बाबुल का घर पीछे छोङ जाती हैं मैं, माँ को ङूढती रहती सास में और कोसती रहती दुनिया कि इस रीत को

बेटा दर्द को पी लेना चाहिये ये माँ कि दी गईं कई सीखों में शामिल था बस इन्हीं चंद शब्दों के सहारे सारी पीढा सह लेती खुश रहती ये देखकर की माँ मुझे खुश देखकर खुश हैं

अतह: पीङा की सीमा भी आई, मुझे स्ट्रेचर पर "आपरेशन थियेटर" की ओर ले जाया जा रहा था मैं डाक्टर और नर्सों से घिरी, कभी अपने भगवान को याद करती तो कभी माँ को कही वो बात "क्या जरुरी है हल्दी रोली के बंधन में बंधना" बीच बीच में नर्स माँ कि तरह मुझे सहलाने लगती डाक्टर हिदायती लिहाजे से बोलने लगते "काम डाउन" "पुट सम प्रेशर" बस कुछ देर और, थोङी हिम्मत रखो मुझे अहसास होने लगता ये मैं कहाँ फंस गई, मेरी जान मानो आफत में थी

तभी बच्चे के रोने कि आवाज़ से "आपरेशन थियेटर" ग़ूज़ं उठा, मेरी भी जान में जान आई नर्स ने मुबारकबाद दी डाक्टर भी बोले कौग्रट्स तुम्हें प्यारी सी बिटिया हुई है