Wednesday, May 11, 2022

Untitled

 बेंत से  बनी  कुर्सियाँ टूट गयी हैं चरमरा कर

थोड़ा वार्निश बचा है  उन में अभी भी

हमारे रिश्ते की गर्माहट सा

पिछली बरसातों,  तुम  भूल गए थे उनको बाहर लॉन में

 

उन दिनों लगातार  पानी बरसा

बिना रुके  दिन रात

रह रहकर तुम भी रिसते रहे

मेरी यादों से

 

आज कल बेमतलब

बात करने को जी चाहता है

चार दो चार दिन का पता नहीं

लेकिन

२० साल पुरानी सारी  बातें याद

आने लगी हैं

अब तो अक्सर ऐसा होता है

 

क्या मेरी खामोशियाँ  अब भी
जाती हैं तुम्हारी मशरूफ़ियत
के दरमियाँ 
उनको खामोश ही रहने दिया है
मैंने एहतियातन

इस  दफ़ा आना
तो छोड़ आना शिकायतों का पुलिंदा
घर के स्टोर रूम में
घंटो बैठेंगे  बेंत  से बनी  कुर्सियों पर
लॉन के ठीक  बीचो बीच
अब धूप खूब खिली रहती है
भरी दोपहरी