Thursday, November 13, 2008

१४ नवम्बर - बाल दिवस

उम्र लगभग १०-१२ साल, पतला-दुबला शरीर, ४ फिट की लम्बाई वाला लङका मैला सा पैंट और उस पर आसमानी रंग की शर्ट पहने जो हलके रंग की होने की वजह से मटमैली हो चुकी थी कालर कुछ घिसे हुये और शर्ट की बाजू पर गाङे काले रंग की परत। पाँव पर अपनी साईज़ से बङी चप्पल जिसका एक फीता नीले और एक सफेद रंग का था। शायद वो चप्पल उसे कहीं पङी मिल गई होगी। बाल छोटे छोटे ऐसे दिखते जैसे किसी चूहे ने कुतर दिये हों, बहुत रूखे और भूरे। चेहरा सांवला लेकिन गाल सर्दियों में चलने वाली ठंडी हवाओं के कारण फट गये थे जिन पर एक हलके काले रंग की परत आ गई थी जो उसके चहरे को और काला बना देती। होंठ भी खुरदरे और सूखे से थे। कंधे पर सफेद नायलान से बना थैला टांगे वो चलता जा रहा था जहाँ भी कूङे का ढेर देखता रुक जाता और फुर्ती से प्लास्टिक के पालीथीन बीनने लगता।

मैं सहज भाव से उसे देखती और उसकी इस हालत पर दया खाती, सोचती अरे आज तो १४ नवम्बर है यानी बाल दिवस मतलब बच्चों का दिन, उन्हें पेस्ट्री केक खिलाने और ढेरों गिफ्स और खिलौने दिलाने का दिन. लेकिन देखो ना इस बच्चे को क्या मालूम की आज क्या है। मैं सोचती चाचा नहेरू बच्चों को बहुत चाहते थे क्या ऐसे बच्चों को भी और थोङा सा मुस्कुरा देती हाँ शायद ऐसे बच्चों को भी। क्या इनके बीच भी वो अपना जन्मदिन मनाते ,होंगे पता नहीं या शायद हाँ मनाते होंगे।

पङोस में रहने वाला चिंटू तो रोज़ ही बाल दिवस मनाता है, हाँ क्यों नहीं आये दिन नये खिलौने, कपङे, टाफी और ढेरों चाकलेट। उसके पापा बहुत अच्छे हैं मैं सोचती हाँ अच्छे होगें फिर चिंटू भी तो कितना प्यारा है। चिंटू के चहरे को सोचते हुये पता नहीं कहाँ से वो कूङा बीनने वाले बच्चे का चेहरा सामाने आ जाता उसके फटे गाल, पीली आँखे और रूखे होंठ अन्दर तक झंझोङ देते। क्या सच उसे नहीं मालूम आज बाल दिवस है।