Wednesday, April 19, 2006

"बस यूँ ही"

आज चौराहे से
गुजरते मैंने
शायद तुम्हें देखा था

तुम
उस पर बनी
रेड लाईट पर
अपनी पुरानी पङ चुकी
हल्के नीले रंग कि
फियेट में बैठे
मुँह में सिगार लगाये
लाईट के
ग्रीन होने का
इन्तज़ार कर रहे थे

इतने
सालों के
बाद भी तुम
बिलकुल नहीं बदले
तभी
मैं तुम्हें
झट से
पहचान गई

तुम्हारे
ललाट पर
पहले से भी ज्यादा
चमक महसूस की
कहो !
कहीं वो
उम्र के तर्जुबे का
असर तो नहीं

1 comment:

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है, मनोभाव खूब उभर कर आ रहे हैं। इस रचना के लिए बधाई।