Friday, April 28, 2006

"माँ के लिये"

(1)

माँ!
मेरे सर में
जूँऐं क्यों नहीं

काश!
होतीं तो तुम
कुछ देर
के लिये ही सही
मेरा सर
अपनी गोद मे तो लेतीं


(2)

माँ!
सब कहते हैं
मैं तुम्हारी ही
परछाई हूँ
लेकिन सच
तो ये है
मैं
तुम तक कभी
पहुँच नही पाई हूँ

4 comments:

Sagar Chand Nahar said...

बहुत अच्छी कविता संगीता जी, कुछ दिनों पहले सूरत में एक विज्ञापन पट्ट पर लिखा पढ़ा था "માઁ જ્યારે આઁસુ આવતા હતા ને તૂ યાદ આવતી હતી,આજે તૂ યાદ આવે છે ને આઁસુ આવે છે".इसका मतलब तो शायद आप समझ ही गई होंगी, कि माँ जब पहले आँसू आते थे और आप याद आती थी, अब जब आप याद आती है और आँसु आते हैं

Sagar Chand Nahar said...

आपकी कविता इतनी अच्छी लगी कि एक ही बार में सारी कवितायें पढ़ने को मन मज़बूर हो गया. आपने भारी भरकम साहित्यिक शब्दों का उपयोग ना करके जो सादगी से अपनी बात कही है सारी कविताओं में कि कई बार युँ लगा जैसे गुलज़ार साहब की कवितायें पढ़ रहा हुँ. माँ पर लिखी कवितायें विशेष अच्छी लगी.

Udan Tashtari said...

बहुत सुंदर, संगीता जी.

समीर लाल

Anonymous said...

Your are Nice. And so is your site! Maybe you need some more pictures. Will return in the near future.
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