Wednesday, October 25, 2006

मेरी दिवाली

तुम्हारे संग मनाई
हर वो दिवाली
कुछ याद सी
आ रही है

उस रात के
अमावसी
अधेरें से दूर,
सिर्फ
मैं और तुम
दीपों के बने
गोल धारे में बैठे
इंतज़ार करते रहे
कि काश
ये अमावस,
प्रकाशवर्ष से भी
लम्बी हो जाये

हाँ सच,
उस रात
अहसास
हुआ था मुझे,
सीता मैय्या कि
अतह: पीङा का
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