ऐसे तो कई मुद्दे हैं, कभी कभी मन में ये विचार भी आ जाते हैं, जबकि कोई दबाव नहीं, कोई मजबूरी नहीं और ना ही कहीं कोई तानाशाही है लेकिन ये बात कई बार दिल को कचोट जाती है औरत तो औरत है और औरत ही रहेगी कुछ सालों पीछे चली जाँऊ (ज्यादा नहीं सिर्फ ३० साल) तो माँ बातती हैं की दादा जी ने उन्हें नौकरी करने कि मंजूरी नहीं दी थी शायद ये कहकर कि भले घर कि औरते काम पर जाती हैं क्या या फिर ये सोचकर की अपने पति से अच्छी नौकरी भला कैसे तुम कर सकती हो फिर तो कई बहाने, कई सुविधाओं को गिना दिया गया अरे इतनी दूर है, रोज़ बस से आना जाना कैसे करोगी बस फिर क्या था पपा ने भी दादा जी की बातों को तव्जों देकर माँ को नहीं करने दी नौकरी ऐसा नहीं है कि दादा या पपा पङे लिखे नहीं हैं लेकिन फिर भी विचारधारा में कई बंदिशें निर्धारित थीं
आज इक्कस्वी सदी तक पँहुचते पँहुचते ये बदलाव तो है कि औरत नौकरी कर सकती है, कुछ पैसे कमा सकती है लेकिन फिर भी कुछ तो बंदिशे अब भी बरकरार हैं अगर औरत घर अक्सर देर से लौटेने लगे तो इन हिदायतों का मिलना तो लाज़मी सा है
देर तक बैठना पङता है तो छोङ क्यों नहीं देतीं?
घर कि तरफ भी तो देखा करो?
अरे अब बस करों, क्या मेरा कमाया पैसा कम पङता है?
अगर आदमी प्रोफैशनल बनकर अपना काम लेट आर्स तक बैठ कर कर सकता है तो औरत के ऐसा करने पर ऐतराज़ क्यों?
अरे इतनी दूर आफिस ज्वाइन करने वाली हो, पता है पूरे १ घंटे की ड्रईव है, फिर तुम्हें घर भी तो दिखना है कौन करेगा ये सब
ऐसी कई बातें है जो दिल के अंदर घर कर जातीं है, उम्मीद है आने वाला कल और बेहतर होगा
मंजिले तो बहुत हैं लेकिन फासले कम नहीं
आज इक्कस्वी सदी तक पँहुचते पँहुचते ये बदलाव तो है कि औरत नौकरी कर सकती है, कुछ पैसे कमा सकती है लेकिन फिर भी कुछ तो बंदिशे अब भी बरकरार हैं अगर औरत घर अक्सर देर से लौटेने लगे तो इन हिदायतों का मिलना तो लाज़मी सा है
देर तक बैठना पङता है तो छोङ क्यों नहीं देतीं?
घर कि तरफ भी तो देखा करो?
अरे अब बस करों, क्या मेरा कमाया पैसा कम पङता है?
अगर आदमी प्रोफैशनल बनकर अपना काम लेट आर्स तक बैठ कर कर सकता है तो औरत के ऐसा करने पर ऐतराज़ क्यों?
अरे इतनी दूर आफिस ज्वाइन करने वाली हो, पता है पूरे १ घंटे की ड्रईव है, फिर तुम्हें घर भी तो दिखना है कौन करेगा ये सब
ऐसी कई बातें है जो दिल के अंदर घर कर जातीं है, उम्मीद है आने वाला कल और बेहतर होगा
मंजिले तो बहुत हैं लेकिन फासले कम नहीं
8 comments:
अंतर्द्वंद और विचारों का अच्छा चित्रण किया है.
समय बहुत तेजी से बदला है और बदलाव बेहतरी की ओर जारी है. कल अपने साथ बहुत कुछ लायेगा. आज ला चुका है.आज कितना बेहतर है बीते कल से, यह तो आप खुद ही बता चुकी हैं.
शुभकामनायें.
अभी तो सिर्फ पति देव और परिवार के बडोँ के साथ का सँतुलन बनाये रखना है
आगे आगे देखिये होता है क्या !! ;-)) क़ब नन्हे मुन्ने आ जायेँगे तब क्या होगा ?? हम्म्` ?? :-))
स स्नेह,
-- लावण्या
नारी की दबी हुई भावनाओं का अच्छा मूल्यांकन किया है… ।
uyiyuouoiuiuoi
Hi,
well thought off and so very true !!!
True...30 years back what happened was the right thing to do and today what’s happening is the right thing to do...but you know what nothing is right & nothing is wrong. This is relative...only the change is right...its only the perspective
30 years back we had more number of people respecting family values
30 years back we had less number of children leaving their parents
are all these things related...probably yes !!
but things will continue to change...may be my daughter will prefer live-in ...and probably that will be the right thing to do then.
सही और सच लिखती हो ।
इसे ज़रूर देखना -
sandoftheeye.blogspot.com
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