Tuesday, July 17, 2007

दिल्ली हिन्दी ब्लागर मीट - १४.०७.२००७

हिन्दी ब्लागर मीट, करीब ११ बजे से शुरु होकर सांय ७:३० पर समाप्त हुई कई नामी गिरामी ब्लागरस ने भाग लिया मीट कनाट प्लेस के कैफे काँफी डे शुरू होकर गङी तक चली सुबह सभी कनाट प्लेस के कैफे काँफी डे में इकट्ठे हुये थे लेकिन ज्यादा जगह ना होने और ज्यादा ना बैठने (कैफे काँफी डे) देने कि वजह को मद्देनजर रखते हुये वेन्यू बदलकर गढी कर दिया गया हम सुबह समय से वहाँ नहीं पहुँच सके इसका खामियाजा हमें भुगतना पङा

हम १२:०० बजे के निकले आखिरकार ४:३० बजे गढी, मीट मे शिरकत करने पँहुच ही गये अन्दर घुसे तो कई लोग भोजन कर चुके थे और कई भोजन कर रहे थे मैं सिर्फ एक ही ब्लागर महानुभव
(आलोक पुराणिक जी) को पहचान सकी, बाकी सब के चहरे पहचानने कि कोशिश करते हुये पास ही रखी कुर्सी पर बैठ गई, पास ही सोफे पर सुजाता जी और निलिमा जी भोजन कर रही थीं सो सबसे पहला परिचय उन दोनों से ही हुआ (कुछ परिचय हमनें उन से लिये और कुछ एक का परिचय हमने ही ले डाला जो ब्लागर बचे थे वे शाम बीतते पहचान मे तबदील हो गये)

फिर हम धीरे-धीरे सरकते हुये
घूघूती-बासूती जी के पास ही हो लिये बहुत से मुद्दे उठे, बहुत सी सार्थकतायें सामने आई, कई भविष्य कि योजनाओं पर बातें हुई कई टैक्नालोजी मे महारत ब्लागरस ने अपनी दक्षता का परचम फहराते हुये अपने विचार रखे, लेकिन "काला अक्षर भैंस बराबर" वाली कहावत को सिद्ध करते हुये वो विचार हमारे सर के ऊपर से निकल गये

मुद्दा ये था कि कैसे नये ब्लागर बनाये जायें , क्यों की हिन्दी बोलने , पढने और लिखने वाले बहुत से लोग है , लेकिन मुद्दा ये नहीं था कि हिन्दी जो कहीं खोती जा रही है उसे आम आदमी के बीच कैसे लाया जाये और कैसे उसे इतना आर्कषक बनाया जाये कि लोग पढने को आतुर हो सकें

मुद्दा ये था कि कई नये एग्रीगेटर आ गये है , तो यह् एक भेडचाल सी है (जो एक टफ कम्पिटिशन भी देगा -ये मेरा मत है) तो क्यों ना कुछ नया किया जाये , लेकिन मुद्दा ये नहीं था कि ऐसा क्या नया किया जाये जो हिन्दी कि बेहतरी के लिये कारगर साबित हो

मुद्दा ये था की कान्टेन्टॅ में रिचनेस और डाइवर्सिटी कैसे लाई जाये, लेकिन मुद्दा ये नहीं था कि लेख सिर्फ व्यक्तिगत सम्बन्धो और व्यक्ति विशेष तक ना सीमित रहकर आम लोगों कि जिन्दगी को भी छूता हुआ हो (जो शायद नये पाठकों को भी समझ आये)

मेरा ये लेख लिखने का मकसद किसी भी व्यक्ति विशेष को आहत करना या फिर उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचाना बिलकुल भी नहीं है ये कुछ विचार मात्र हैं जो शायद समयाभव के कारण (या अपरिचित ब्लागर) मीट के दौरान व्यक्त नहीं कर पाई