मेरी बहुत पहले लिखी एक कविता
सभी कहते हैं,
भगवान का नाम
अमर है, अजर है
ना खत्म होने वाली
रोशनी और हवा है
भगवान अद्श्य होकर भी
एक द्श्य प्राणी सा
हम सभी के दिलों में
विद्यमान
ज्योति सा प्रज्वल्लित है
भगवान दिलों के किसी
कोने में बैठा
उस आदमी सा जो
वक्त के साये से
डरकर, छिपकर बैठा
कांप रहा है
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4 comments:
अगर भगवान लोगों के दिलों में वक्त के साये से डरकर, छिपकर बैठा कांप रहा है तब लोग उस के लिए कुछ करते क्यों नहीं? यह डरा हुआ, काँपता हुआ भगवान किसी का क्या भला करेगा? बंधू मेरा भगवान तो न डरता है और न काँपता है. वह तो मुझे शक्ति देता है जिससे मैं न डरता हूँ और न काँपता हूँ.
मुझे लगता है छिप कर नहीं, आड़ लेकर बैठा है एक मुस्दैत सीमा पर तैनात उस जवान सा, जो देश की रक्षा का जज्बा दिल में लिये हर वक्त चौकसी में लगा है. आपने उसे छिपा समझ लिया-शायद भ्रम हुआ होगा.
वैसे यह बस एक नजरिया है. :)
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आप हिन्दी में लिखती हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
Hi,
Vivek this side from Manila,
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भगवान दिलों के किसी
कोने में बैठा
उस आदमी सा जो
वक्त के साये से
डरकर, छिपकर बैठा
कांप रहा है
Pretty srong n effective statement...
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