उसने अपनी काली चमकीली आखों को
मेरे चहरे पर टिका कर कहा
तुम प्यार नहीं कर सकते
मैं जानना चाहता था, क्यों?
वो बोली तुम शादीशुदा हो
तुम्हें कोई हक नहीं
गैर प्यार का
करना है तो अपनी
पत्नी से, बच्चों से करो
मैं हैरान था, असमंजस में
सिर्फ देख रहा था उसे ये कहते
और सोचता रहा,
क्या प्यार भी गैर हुआ है कभी
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9 comments:
बहुत बढ़िया..
क्या प्यार भी गैर हुआ है कभी..बहुत गहरा सवाल कर दिया आपने तो इस रचना में दिल को छू गई है यह
humm....kabhi kabhi pyar bhi gair ho jata hai...zindgi ke dhero falsafe hai ...aap mano ya na mano.
बहुत ही बढ़िया अच्छा लगा पढ़कर।
सच में प्यार कभी भी ग़ैर या अपना नहीं होता
प्यार तो बस प्यार ही होता है।
शुभकामनाएं। आप और बढ़िया लिखें हम पढ़ते रहेंगे। आप पढ़ाती रहिए।
मुझे परदा पसंद नही है. इसका सीधा जितना मतलब है उतना है नही. ठीक उसी तरीके से प्यार कभी गैर नही होता का जितना सीधा मतलब है वैसा हैं नही.. आपका भावः ठीक है लेकिन प्यार गैर भी हो जाता है
bhut hi sundar rachana.likhati rhe.
बहुत उम्दा भावपूर्ण रचना के लिए बधाई.
Bahut bada sach..ki pyar gair bhi hota hai..aur uss gair pyar ko apnana galat hota hai in duniyawalo ki nazaro me...chahe phir khud galti unki nazaro me hi kyu na ho...
Bahut accha likha hai.. keep it up & best wishes :-)
Your know me :-)
kya pyar bhi gair huwa hai kabhi
bedharak sawalo ke ghere me
uljha diye hain
chhu lene ki chahat
kya hak wo hi pas rakhata hai
jo bina shadishuda ho
akhir pyar ko ajadi kab milegi
rachna wastav me bahut marmik andaj me hai.
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