शाम के धुंधलके में
ओस की कुछ बूदें
पत्तों पर मोती सी चहक कर कह रही हैं
तुम यहीं तो हो
यहीं कहीं शायद मेरे आसपास
नहीं शायद मेरे करीब
ओह$ नहीं सिर्फ यादों में
दूर कहीं किसी कोने में छुपे जुगनू से
जल बुझ, जल बुझ
भटका देते हो मेरे ख्यालों को
और भवरें सा मन
जा बैठता है कभी किसी तो
कभी किसी पल के अहसास में
और तब तुम
दिल में उठती एक टीस की तरह
घर कर जाते हो दिलों दिमाग में......
ओस की कुछ बूदें
पत्तों पर मोती सी चहक कर कह रही हैं
तुम यहीं तो हो
यहीं कहीं शायद मेरे आसपास
नहीं शायद मेरे करीब
ओह$ नहीं सिर्फ यादों में
दूर कहीं किसी कोने में छुपे जुगनू से
जल बुझ, जल बुझ
भटका देते हो मेरे ख्यालों को
और भवरें सा मन
जा बैठता है कभी किसी तो
कभी किसी पल के अहसास में
और तब तुम
दिल में उठती एक टीस की तरह
घर कर जाते हो दिलों दिमाग में......
(पेबलो पिकासों की पेंटिंग)
11 comments:
संगीता जी आपको बधाई । सुन्दर रचना के लिए । आपने बहुत अच्छे भाव का शब्दों के भाध्यम से साकार रूप दिया है । पहली बार ही आपका काव्य पढ़ा अच्छा लगा । शुभ वर्तमान
WAH
भावात्मक कविता
आपको बधाई एवं शुभकामनाएं
और भवरें सा मन
जा बैठता है कभी किसी तो
कभी किसी पल के अहसास में
और तब तुम
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !
birah ka geet lagta hai .sunder
तुम यहीं तो हो
यहीं कहीं शायद मेरे आसपास
नहीं शायद मेरे करीब
ओह$ नहीं सिर्फ यादों में
दूर कहीं किसी कोने में छुपे जुगनू से।
बहुत खूबसूरत से भाव हैं, पढ कर अच्छा लगा। बधाई।
wah kya sunder kaha aap ne
tum ho yehi sabse kubsorat ahasas
he
regards
दिल में उठती एक टीस की तरह
घर कर जाते दिलों दिमाग में......
बहुत ही सुन्दर है यह आप की कविता
धन्यवाद
ऐसा लगा जैसे दिल से निकली आवाज है.....ओर पेन्टिंग भी खूब है......
संगीता जी,
आपकी किवता बहुत अच्छी है । भावों की प्रखर अिभव्यिक्त है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख- सुरक्षा ही नहीं होगी तो कैसे नौकरी करेंगी मिहलाएं-लेख िलखा है । इस पर अपने िवचार व्यक्त कर आप बहस को आगे बढा सकती हैं ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बेहतरीन रचना। बधाई।
very good....chha gaye...
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