Monday, May 12, 2008

भगवान के नाम

मेरी बहुत पहले लिखी एक कविता

सभी कहते हैं,
भगवान का नाम
अमर है, अजर है
ना खत्म होने वाली
रोशनी और हवा है

भगवान अद्श्य होकर भी
एक द्श्य प्राणी सा
हम सभी के दिलों में
विद्यमान
ज्योति सा प्रज्वल्लित है

भगवान दिलों के किसी
कोने में बैठा
उस आदमी सा जो
वक्त के साये से
डरकर, छिपकर बैठा
कांप रहा है

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Tuesday, May 06, 2008

रज्जन की शादी - ०१

मंगल गीतों से सारा घर गूँज रहा था, रज्जन की मौसी ढोलक कि थाप को अपने गीतों में रमाने कि कोशिश करते हुये, बीच बीच में बैठी हुई औरतों को भी उकसा रही थी अरी गाओ ना साथ में, गप्पें मार रहीं हो हाँ, तालियों की भी थाप दो "अम्मा तेरा बिटवा बना है आज बन्ना" कुछ मिनट ही औरतें साथ देतीं और फिर गप्पों मे लग जातीं, ऐसा लगता कि जैसे कई बरसों बाद दो सहेलियाँ साथ ऐसे फुरसत में बैठीं हों अकेले मौसी कि आवाज़ रह रह कर सभी कि बुदबुदाहट को कहीं दबा देतीं

बस, अब बन्द करो गाना बजाना, बिटवा के हल्दी उबटन का मुहूरत हुआ जा रहा है रज्जन कि अम्मा चहरे पर व्यस्तता के भाव लाकर बोली जाओ बच्चा जरा मौसी, बुआ, दीदी, भाभी सभी को बुला लाओ और रज्जन को भी रज्जन शर्माता हुआ आ पँहुचा, आंगन मे मंगल गीत कि आवाज इस बार बहुत धीमी थी सिर्फ दो बुढी औरतें गा रहीं थी "मेरे बन्ने को लागे ना नज़र" रज्जन सर झुकाये बङी सी परात पर कई औरते से घिरा बैठा था वहाँ सभी उसकी मौसी, मामी, बुआ, भाभी और दीदी थीं सभी उसके सर, बदन-पीठ पर हल्दी और उबटन लेकर मसल देती और साथ ही एक सुर में हँसती भी रहती, जैसे हँसना रीत का एक अहम हिस्सा हो

अरे रज्जन इतना क्यों शर्मा रहा है, हमारे ही सामने तू पैदा-बडा हुआ है, दूसरी बोली देखो समय बीतते बिलकुल देर नहीं लगती रज्जन ने थोङा सा ऊपर देखा फिर नजरे झुका लीं

अब सभी को शाम का इन्तजार था सभी कि अपनी अपनी तैयारियाँ थीं बारात मे जाने की.