Friday, June 27, 2008

बीते जमाने की बातें

नीचे अम्मा टीवी से चिपकी बिना पलक झपकाये महाभारत के द्रौपदी, द्रुयोधन संवाद को कुछ ऐसे देख रही हैं जैसे कल परिक्षा देनी हो छत पर चढा पिन्टू बीच बीच मे चिल्लाकर पूछ रहा है अब ठीक है, अब बताओ.. अम्मा बोलो भी क्या अब ठीक हुआ... अम्मा अजीब सा मुँह बनाये जैसे किसी खेलते बच्चे को बीच में छेड दिया हो चिडकर बोलती है नहीं अभी नहीं गुप्ता जी के घर कि तरफ घुमाओ, हाँ-हाँ थोडा ठीक है. बस-बस पिन्टू एकदम ठीक हो गया ऐसे ही करे रहो. अरे अम्मा तार पकडे हूँ... ऐसे थोडे ही ना तार पकङे रहूँगा. अम्मा चीखीं अरे पिन्टू फिर से खराब हो गया.
लग रहा था कलाकार टीवी से निकलकर घर मे आ घुसे हैं और अब यहीं अम्मा और पिन्टू द्रौपदी, द्रुयोधन संवाद पूरा करेगें...पिन्टू पसीने से लथपथ नीचे आ गया है, क्या अम्मा ये अजीब तमाशा है रोज़ का कितनी मर्तबा कहा है बाबूजी को, नया ऐन्टीना ले आये लेकिन सुनता कौन है, टीवी भी साफ आना चहिये और पैसा भी नहीं खर्च करना है. लेकिन अम्मा को तो सिर्फ अफसोस है आज इतना इम्पोटेंन्ट ऐपिसोड मिस हो गया रिपीट टैलीकास्ट भी तो नहीं होता.
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आज २६ जनवरी है, अम्मा नाश्ता पानी लेकर बिलकुल तैयार बैठी है पिन्टू के साथ दयानंद कालोनी में रहने वाले सिन्हा जी के यहाँ जाना है कल ही रात सारी योजना बना ली थी कि, इस साल की परेड कलर टीवी में देखनी है, क्योंकी अम्मा ने मिसेज़ गुलाटी को कई बार कहते सुना था... परेड देखने का मज़ा तो कलर टीवी में ही है. क्या सुंदर झाँकियाँ दिखती है फिर सजे हुये हाथी-ऊँट पर बैठे स्कूली बच्चे. सभी प्रान्त के सिपाही अपनी-अपनी यूनिफार्म में... स्कूली बच्चों के लोक नृत्य... बस तभी से अम्मा ने सोचा था किसके घर जाकर २६ जनवरी की परेड देखी जाये.

सिन्हा जी से बाबूजी कि पुरानी जान पहचान हैं, अपनी सुनार कि दुकान चलाते है, खूब पैसा कमाते है, मोहल्ले में तीन चार लोग ही हैं जिनके यहाँ कलर टेलीविज़न है, केबल कनेक्शन भी लिया है पिन्टू को जब भी मालूम पडता है कि कोई नई फिल्म आनी है तो कोई ना कोई बहाना करके पँहुच जाता है उनके वहाँ.

आज अम्मा और पिन्टू ने ठान रखा है की बाबूजी के आते ही उन्हें बोलेगें कलर टीवी लेने को.
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Thursday, June 19, 2008

प्यार !!

उसने अपनी काली चमकीली आखों को
मेरे चहरे पर टिका कर कहा
तुम प्यार नहीं कर सकते
मैं जानना चाहता था, क्यों?
वो बोली तुम शादीशुदा हो
तुम्हें कोई हक नहीं
गैर प्यार का
करना है तो अपनी
पत्नी से, बच्चों से करो
मैं हैरान था, असमंजस में
सिर्फ देख रहा था उसे ये कहते
और सोचता रहा,
क्या प्यार भी गैर हुआ है कभी

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Thursday, June 05, 2008

एक सुबह

टिपटिप, टिपटिप, टिपटिप, पेङ सारे नहाये हुये, कुछ ज्यादा ही हरे और चहक रहे हैं माँ ने आज कटहल बनाया है, बेसन में संधा हुआ, महक पूरे घर से शायद पङोस के शर्मा जी के घर तक जा रही है, दीवारे भीगी हुई अपने रंग से थोङी फीकी, सीमेंट और सफेदी कि सोंधी खुशबू, मन कर रहा है खा जाऊ जैसे बचपन मे दीवारें कुरेद कर खा जाया करती थी और माँ बहुत डांटती मैं अपने रूम कि खिङकी से नीचे झाँक रही हूँ माँ कई बार पूछ चुकी है, आज आफिस नहीं जाओगी क्या? लेकिन मेरा एक ही जवाब, बस अभी उठती हूँ, थोङी देर और...

पास ही के बस स्टाप पर रंगीन छतरियाँ, नीली, लाल, गुलाबी लेकिन काली कुछ ज्यादा हैं कोई अकेले ताने खङा है, किसी के नीचे दो लोग तो कोई तीन भी हैं बीच वाला तो सुरक्षित, लेकिन आजू-बाजू दोनों जन किनारे से भीग गये हैं अरे वो तो गुप्ता जी है, पैन्ट की मोहरी अपनी जुराबों मे दबाये, बैग को बगल में छिपाये, अजीब सा मुँह बनाकर खङे है, जैसे बारिश नहीं कहीं कोई पहाङ टूट पङा हो जगह जगह पानी के चहबच्चे बन गये है, मिसेज गुलाटी भी अपनी साङी को एक फिट ऊपर उठाये संभल-संभल कर बस स्टाप कि तरफ जा रही हैं, ओह हो... ये गाङी वाले भी ज़ूम से निकाल ले जाते है ज़रा भी नहीं सोचते सङक पर चलने वालो का... छपाक से पानी के छीटें पङ गये मिसेज गुलाटी कुछ भुनभुना रही हैं, बारिश थोङी और बढ गई है

बचपन की कविता याद आ रही है,
रेन रेन गो अवे, कम अगेंन अनदर डे
डैडी वन्स टू प्ले, रेन रेन गो अवे...

लेकिन आज मन है

ऐ बावरी पवन, खीच के ला
मेघा सावन

हम भी आज भीगेंगे
नाचेगे बारिश मे
ता ता धिन...
ऐ बावरी पवन, खीच के ला
मेघा सावन,

दौङ धूप में निकले दिन
खबर नहीं कब आईं तुम
बचपन के दिन बुलाते है
फिर से कर लें कुछ
मस्ती हम...
ऐ बावरी पवन, खीच के ला
मेघा सावन