Thursday, September 18, 2008

कुछ हायकू

धर्म धर्म है
बनाता इंसा इसे
अधर्म क्यों
----------
जिहाद क्या
खुदा की इबादद
आंतकवाद
----------
रमज़ान के
रोज़े की सहरी से
जागी सुबह
----------
कूङा बीनता
गरीब बचपन
सङकों पर
----------
महानगर
दौङ रहा आदमी
पैसों खातिर
----------
बच्चे रोते
चिङिया लाती दाना
कहीं दूर से
----------
काले बादल
घनघोर घटायें
बरखा लायें
----------
नहीं भूलते
बचपन के दिन
सच है ना
----------
रुनझुन से
रीनी के घर तक
फूल क्यों खिले
----------
चांदनी रात
हमसफर साथ
वाह क्या बात
----------
तितली उङी
बनकर वो पंछी
डालियों पर
----------
सर्द सवेरा
ओढकर आई है
शीत की ऋतु
----------
धूप सुहानी
सुनहरी हलकी
मनवा भावे
----------
डाके तन को
स्वेटर पहनकर
निकले हम
----------
देर से आते
जल्दी क्यों छिपते
सूरज तुम
----------
रेवङी – गुङ
मुंगफली गज्ज्क
खायेगें हम
----------