आदमी भागता है दौड़ता है, लेकिन हासिल...कर पता है क्या?? क्या मालूम....
(१)
आदमी, रात में ये सोचकर सोया था कल ज्यादा मेहनत करेगा, बहुत दूर गाँव तक जाएगा और कुछ ज्यादा पैसा कम कर लाएगा| आपने आप में अपने भगवान से पूछता है| भगवान कैसा रहेगा कल का दिन, क्या ग्राहक मिलेगें, मुह मांगे दाम देंगे?? सोचते - सोचते उसकी आँख लग गयी... सपने हकीकत से कितने अलग होते हैं.. लोग बोलते हैं जो कुछ भी हम दिन में सोचते हैं वो रात को सपनो में दिखाई देता है... लेकिन कहाँ, कई बार हकीकत से परे बहुत सुन्दर तो कभी ना होने वाले भयानक??
आदमी उठता है, निकल पड़ता है बीवी सोचती है अभी होगा यहीं आकर कहेगा खाना दो काम पर निकलना है, लेकिन आज वो निकल चुका है बिना कुछ खाए बिना कुछ बताये, बीवी मन ही मन सोच लेती है कल बहुत परेशान थे, इसलिए आज जल्दी निकल चुके हैं... अपने आप में बुदबुदाती है ... कितनी बार समझाया है इन्हें "किस्मत से ज्यादा और समय से पहले किसी को कुछ मिला है क्या""
आदमी चला जा रहा है सुनसान साँप जैसी काली, चमकीली, टार से बनी मजबूत सड़क पर... दूर दूर तक कोई नहीं... बहुत दूर एक गाँव नजर आ रहा है ... अब तक वो करीब ५० रूपये कमा चुका है और मन ही मन उम्मीद करता है वहां से ५०-१०० रूपये तो कमा ही लाएगा... और आज उसकी बीवी खुश हो जायगी... सड़क पर कभी कभार एक्का दुक्का वाहन गुज़र जाता सायं $$$$ से.....
आदमी अपनी एकसार चल से गाँव की और बड़ा चला जा रहा है... एक हाथ में उठाये कुछ परांदें, लाल, नीले चमकीले और ढेरों काले और दूसरे हाथ में शीशे के फ्रेम से बना लकडी का बक्सा, जिसमें रखे है कुछ बिन्दी के पत्ते, नाख के लौंग, कान के टॉप्स, सिन्दूर की डिबिया और बहुत कुछ... जो अक्सर भा जाता है अलहङ जावान लङकियों को और जुटा लेतीं हैं भीङ उसके इर्द गिर्द, भैया ये दिखाओ वो दिखाओ अरे नहीं, बहुत महँग़ा लगा रहे हो, खा जाती हैं उसके कान....
(२)
बीवी अक्सर परेशान रहती है... पति अक्सर लेट घर आता है... आकर कहता है खाना खा कर आया है.. वो बोलती है बता नहीं सकते थे... पति बोलता है समझा करो client के साथ बैठा था बिज़नस की बातें चल रही थी... अगर ये प्रोजेक्ट हाथ लग आया तो लाखों का मुनाफा होगा.. पति ये बोलकर खुश होता है लेकिन पत्नी के चहरे पर पहले जैसी ही झुंझलाहट और परेशानी बरक़रार रहती है|
पति मन ही मन सोचता है.... अगर ये deal हाथ लगी तो पैसे आते ही नई बड़ी गाड़ी लेगा... अपने आप से मन में बोलता है, "होंडा सिटी" कैसी रहेगी... या फिर सफारी ले लूँ... सोचते सोचते उसकी आँख लग जाती है....
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आदमी भागता है दौड़ता है, हांफता है, लेकिन हासिल...कर पता है क्या?? क्या मालूम....
10 comments:
bahut khub
http://kavyawani.blogspot.com/
bahut shandar rachna
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बहुत सुंदर.
धन्यवाद
.एक उम्र में हर आदमी सोचता है के वक़्त का सिरा दौड़कर पकड़ लेगा .....
अरसे बाद आपके कुछ ख्याल सफ्हे पर आ टिके है ..आती जाती रहिये ...आपको पढना सकूं देता है
बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट...
Thanx for sharing....
samaaj ke do vargon ke adhe adhoore sapnon ko kitni bakhoobi se pesh kiya...kash dono ke sapne poore hote...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
आदमी भागता है दौड़ता है, हांफता है, लेकिन हासिल...कर पता है क्या?? क्या मालूम....
अगर यही मालूम हो जाये तो भागे दौड़े ही क्यों
सुन्दर आलेख
"इनर वाएस" शीर्षक से आकर्षित होकर अचानक ही आपके ब्लॉग पर आना हुआ - अपने तरह का अलग प्रकार का लेखन लगा आपका जिसे पढना सुखद लगा
अच्छी पोस्ट.....मह्त्वकंषाओं के सहारे ही जी पाते है लोग....
whenever u write , u arise a question , a genuine question which forces us to think and do something .. which is gr8 . Thanks :)
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