छापे मारकर लायी गई लड़कियाँ
अपने
सीने के उभार को दुपट्टे में
छुपाती
शिनाख्त
ना हो पाने की
कवायत में
मुँह
को कपडे में ढाँपती
लगभग
धकेली हुई
थाने
ले जाती हुई लड़कियाँ
अपने
पैर के अंगूठे से
फर्श को कुरेदती
दीवारों
को एक टक ताकती
किस्मत
को कोसती, माँ बाप को
धिक्कारती
थाने
में लाइन से खड़ी
की गई लड़कियाँ
कुछ
गंभीर, कुछ बेपरवाह, कुछ
सजल
जवानी
की मैराथन में हांफती, निढ़ाल
सी
गुमसुम,
गुमशुदा सी लड़कियाँ
विस्थापन
से स्थानन की ओर
समाज
से बहिष्कृत, गरीबी से त्रस्त
समाज
में स्वकृति से वंछित
कुछ
बदचलन सी लड़कियाँ
ठीक
हमारे घर जैसी
लेकिन
थोड़ी अलग
दिल
में सैकड़ो सवाल लिए
ज़बान
को बंद
किये
हमारे
गली मोहल्ले सी दिखती
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