Thursday, February 09, 2006

बेचारगी

रोज़ गुजरते उस सडक पर
नजरे अक्सर टकरा जाती हैं
उस बेचारगी भरी नज़र से
और तभी
ख्याल आता है
कल ही तो दिया था तुम्हें
५ रुपये का नोट
क्या खर्च भी कर डाला

1 comment:

विजेंद्र एस विज said...

बडे संवेदंशील शब्द चुने हैं संगीता ...तुम्हारी कविता अछ्छी लगी ... लिखती रहो...

बधाई...

-विज