Saturday, February 25, 2006

वो वक्त

वो शाम
आज तक याद है मुझे
जब तुम्हारे
प्रथम आलिंगन ने
ये अहसास कराया था
की प्रेम
शायद वासना से ऊपर
उस हिमालय पर बैठे
शिव सा स्थिर और पवित्र है

वो वक्त
थम सा गया
मेरी जिन्दगी मे
और मैं उसे
अपने जीवन का
सत्य मानकर
सांसे लेती रही

आज जब तुम्हें
देखती हूँ
किसी और के
वक्त का हिस्सा
बनते हुऐ

तब
वही वक्त जो
थम गया था
मेरे लिए
मेरी कल्पना को
सहारा देने
मुझे
मुँह् चिढाता है

1 comment:

Anonymous said...

Sangeeta, tumne vakt aur uss ahsaas ko bahut hi acche sabdo aur bhavo me vyakt kiya hai...muje iss kavita ka pratham para bahut hi accha laga jaha tumne Prem ko Shiv sa pavitra aur sthir bataya hai...

Bahut si subhkaamanaye aur bahut se pyar ke saath....

Aasha karti hu, jald hi kuch aur padne ko milega...

Tumhari Bhawna