मेरे सर पर लाल सुनहरे गोटे वाली चुनरी और माथे पर बङी गोल सिंदूर की लाल बिंदिया थी. उस दिन मैं खुद को एक महारानी सा महसूस कर रही थी.
सभी अपने अनुभवों कि लम्बी चादर फैलाकर शायद मुझे भी अहसास कराना चाह रहे थे कि मैं भी उन लोगो मे से एक उस पर बैठी हुई हूँ.
माँ ने नज़र का काला टीका लगाया था मेरे दाँये कान के पीछे, ठीक निचले हिस्से पर, लेकिन फिर भी हर दो मिनट बाद आकर मेरे चहरे को अपने दोनों हाथों से प्यार से सहलाती और फिर हाथों को अंगुलियों से चूम लेती तो कभी मेरे सर पर अपने दोनों हाथ घुमाकर अपने माथे के दोनों ओर अंगुलियों से कङक की अवाज़ करती जैसे आज शायद सारे ज़माने की बलायें मुझपर आ गिरेगीं.
आज का दिन जिन्दगी मे एक ऐसी खुशी सा लग रहा था जो मेरे अलावा वहाँ मौजूद सभी के चेहरे पर अपने आप झलक पङता. माँ बनने का गौरव और खुशी आज दुगनी हो गई.
सभी औरतों ने बारी बारी से मेरी गोद में अपने उपहार रखतीं और पास आकर कान मे अच्छी बातें कहती और मैं सब सुनकर खिलखिलाकर हँस पङती.
इसी क्रम मे सारी रात कब बीती और कब सुबह हो गई पता भी नहीं चला माँ सिरहाने बैठी उठा रहीं थीं, और मेरी आँखे खोलते ही पूछने लगीं क्या हुआ सोते हुये मुस्कुरा क्यों रही थी.. कोई अच्छा सपना देखा क्या? और मैं उन्हें देखकर फिर से मुस्कुरा दी और मन ही मन सोचने लगी सच सपना तो वकई बहुत अच्छा था..
2 comments:
Bahut accha likha hai Sangeeta,
Aur haan ye sirf sapna hi nahi hai, har aurat ki jindgi ka bahut aham aur sachai se bharpur pal hote hai...tumne unn palon ka bahut sajiv chitran kiya hai...
Bahut-bahut badhaai meri taraf se aur bahut saara pyar...:-)
Your Bhawna
Sangeeta bitiya, Tum jitni pyari ho utna hi tumhara man bhee hai !
Iswar tumhare her Sapne ko poora karein ye sneh ashish bhej rahee hoon !
Kush raho , humesha !
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