वो हाथ
जिन्हें तुम
उम्र भर थाम कर
साथ
चलना चाहते थे
आज
हवा के झोकें
के बिना भी
काँप जाते हैं
और
ये आँखे
जिनमें तुम
अपनी किस्मत के
सितारे ढूँढा करते थे
आज पनियाली
हो चुकी हैं
तुम्हारे
इन्तजार में
बिताये हुये पल
क्या..?
गिन नहीं सकते, तुम
मेरे चेहरे पर पङी
झुर्रियों की लकीरों से
1 comment:
संगीता, अभी तुम्हारा ब्लॉग देखा और सारी कवितायें एकबार में पढ गई. बहुत अच्छा लिख रही हो.ऐसे ही खूब बढिया लिखती रहो, हमेशा
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