Wednesday, May 03, 2006

"तुम्हारा नाम"

सुनो!
मैं उन
ऊँची वादियों के
बीच तुम्हारा
नाम पुकारना
चाहती हूँ

जहाँ से
वो आवाज़
हर वादी-पहाङ
से टकराकर तुम्हें
कई बार सुनाई दे

5 comments:

Pratyaksha said...

अच्छी लगी तुम्हारी ये छोटी सी कविता

उन्मुक्त said...

काश...
होता कोई,
पुकारता, जो नाम मेरा भी|
वादियों से टकरा कर,
कम से कम,
सुनाई तो देता, मुझे भी|

प्रवीण परिहार said...

मैंने भी कई बार पुकारा एक नाम,
पर न जाने क्यों,
वो नाम उन वादीयों-पहाङो से टकराकर,
कभी सुनाई नही दिया।

Rati said...

isake liye tumhe fir se paharo ke desh jana parega
lekin accha idea he, kavvita bhi

Anamikaghatak said...

bahut sundar prastuti.............achchha lagaa padhkar