याद है
मैं अक्सर
कहता था
मरते समय
तुम मेरे
पास ही रहना
शायद उन
अन्तिम पलों के
साथ से मुझे
स्वर्ग
नसीब हो जाये
और तुम
इस बात को
हवा में तैरते
झाग के
बुलबुले सा
हंसकर
टाल देती
सांसों कि
उन हर
आखिरी कङी मे
तुम्हें पुकारते
मेरी आत्मा
त्रस्त हो गई
आज भी मैं
कई पीपल के
पेङों पर
उलटा
लटका रहता हूँ
3 comments:
बहुत खूब संगीता जी
भूतों की व्यथा को बहुत अच्छी तरह से व्यक्त किया आपने
संगीता जी, आजकल कहॉ हैं आप, भूतों पर कविता। रामसे भाइयों की "फैन" हो गईं हैं क्या आप?
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