Friday, June 16, 2006

(1)

कागज़ के
टुकङों पर
लिखना
फिर
लिखकर उन्हें
एक साथ
करीने से जोङना
अच्छा लगता है

तुम ही ने तो
सिखाया था
ये गुर
या फिर
तुम्हें ऐसा
करते देख
सीखती चली गई

जो भी है
ये आज तक
आदत में
शामिल है
तुम्हारा नाम
लेने की तरह

3 comments:

Anonymous said...

शब्दों में गुंथे भाव , अथाह प्रेम की झलक देते सुन्दर बन पड़े है

Anonymous said...

Hello I am rajni

Anonymous said...

Nice colors. Keep up the good work. thnx!
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