जब हवाओं का रुख कुछ ऐसा ही है, तो हमने सोचा जरा हम भी उन में थोङा बह लेते हैं, फिर बाद में बिना बयार उङने का क्या फायदा जब कोई उङता ही ना देखे...तो जनाब, पिछले दिनों हम भी उत्तरांचल भ्रमण पर गये थे वैसे मूल रूप से हम उत्तरांचल के ही है, लेकिन फिर भी वहाँ जाना बहुत कम हो पाता है, या फिर यूँ कह लिजिये कि हमेशा टूरिस्ट बनकर ही जाते हैं.
उत्तरांचल - विशाल पर्वतो से ढका हुआ, चारों तरफ हरियाली और बहुत से कतारबद्ध चीङ के लम्बें-लम्बें पेङ बहुत नीचे (अगर आप ऊँची पहाङी पर है) "रामगंगा" नदी, कलकल बहती हुयी झोपड़ीनुमा घर जिनकी छतें बङे-बङे पत्थरों से ढकी होतीं हैं जगह जगह पहाङियों से गिरते झरनें आमों से लदे हुये पेङ (हम लोग गर्मियों मे जो गये थे भई) बहुत संकरी (सर्पीली कदकाठी सी) सङकें, जिन पर एक समय में सिर्फ एक ही वाहन गुज़र सकता है यहाँ मैं जरूर कहना चाँहूगी कि वहाँ के वाहन चालकों मे बहुत धर्यता होती है तो ऐसा कुछ नज़ारा होता है उत्तरांचल का आपकी सहायता के लिये कुछ छायाचित्र भी दे रही हूँ नीचे (मेरे खुद के लिये हुये :-))
बिंसर महादेव - जैसा नाम से ही आभास होता है बिंसर महादेव, भगवान महादेव जी का मंदिर है कहा जाता है कि इस जगह कि खोज के पीछे एक कहानी है, ये जगह गाँवों से काफी दूर और जंगलों के बीच है काफी समय पहले उस जगह कब्रिस्तान हुआ करता था तब वहाँ से कोई नहीं गुजरता था (शायद भूत पिचाश के डर से) फिर बहुत समय पहले एक बाबा वहाँ आकर रहने लगे जिनका लोगों ने बहुत विरोध किया लेकिन हालात पहले से बेहतर दिखाई देने पर, लोगों ने बाबा के साथ मिलकर वहाँ मंदिर कि स्थापना की कई सालों के बाद उन बाबा ने वहीं समाधि ले ली आज भी उन बाबा को उस जगह पूजा जाता है
दूनागिरी - कहा जाता है कि जब हनुमान जी, लक्षमण जी के लिये संजीवनी बूटी ले जा रहे थे तब एक पहाङ का छोटा टुकङा वहाँ गिर गया था उसी जगह मंदिर कि स्थापना कि गई और वहाँ राम जी, लक्षमण जी, सीता मैय्या और हनुमान जी को पूजा जाता है
मानिला - मंदिर माता का मंदिर है ये मंदिर दो जगह स्थित है एक पहाङी के ऊपर जिसे "मल्ल मानिला" कहा जाता है और दूसरा "तल्ल मानिला" जो पहाङी के नीचे है मानिला मंदिर के दो जगह होने के पीछे कि कहानी कुछ ऐसी है, कि कई सालों पहले नीचे वाले मंदिर में कुछ चोर आये जो माता कि (सोने) मूर्ति चुराकर ले जाना चाहते थे लेकिन मूर्ति भारी होने के कारण वो सिर्फ माता का हाथ ही काट कर ले जा पाये, पर वो जितना ऊपर बढते गये हाथ भारी होता गया वे चोर जब थक गये तब उन्होंने हाथ (सोने का) नीचे रखा और जब उठाने लगे तब उनसे उठा नहीं तब तक कुछ गाँव वाले वहाँ आ चुके थे तभी से वो हाथ ऊपर स्थित मंदिर मे रखा गया है और वहाँ भी मंदिर कि स्थापना कि गई
एक और खास बात है इस मंदिर की, मंदिर के परिसर मे एक विशाल पेङ है जो हमेशा हर मौसम मे हरा रहता है उसमे कोई फल नहीं लगते अभी तक ये एक रहस्य है कि वो पेङ किस चीज़ का है, जो आज तक कई रिर्सचों के बाद भी रहस्य बना हुआ है
गर्जिया - माता का मंदिर है जो कोसी नदी के बीचोंबीच स्थित है बरसातों मे नदी मे बाढ आने पर भी ये मंदिर जस का तस बना रहता है यही इस मंदिर की मान्यता है
उत्तरांचल के लोगों मे भगवान के प्रति अपार श्रधा होती है वहाँ हर पहाङ पर छोटे-छोटे मंदिर होते हैं और लोग उन्हें "भूमिया" देवता के नाम से पुकारते है मतलब वहाँ भूमि को पूजा जाता है शायद यही कारण है कि वहाँ के पहाङ बहुत शांत होते हैं वहाँ घूमने के लिये बहुत से मंदिर हैं
उत्तरांचल बहुत बङा है. इसलिये कन्फ्यूज़न को दूर करते हुये बता ही देती हूँ कि, मैं कुँमाऊ की बात कर रही हूँ
तो कुछ ऐसा था हमारा भ्रमण, अध्यातम, शांति और प्रेरणा से ओतप्रोत.
3 comments:
Hmm I love the idea behind this website, very unique.
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बहुत बढिया
phot nahi dikhi, dikhati to majaa jata
fir bhi accha he
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