Thursday, September 14, 2006

सपनें

(१)

जिन चिटीयों को
पैरों तले
दबा दिया था
मैंने
कभी अनजाने में
वो अक्सर
मुझे मेरे
सपनों मे आकर
काटतीं हैं

उनके डंक
पूरे शरीर मे
सुई से चुभकर
सुबह तक
देह के हर
हिस्से को
सूजन मे
तबदील कर देते हैं

ऐसा अक्सर
होने लगा है आजकल
पता नहीं क्यों....?

5 comments:

Udan Tashtari said...

बडा अजीब ख्वाब है. कहते हैं, तकिये के नीचे कैची रखकर सोने से बुरे ख्वाब नही आते. :)

बडी गहरी रचना है.

प्रवीण परिहार said...

शायद ये चिटीयां, चिटीयां नही है
ये वो अधूरे सपने है
जिन्हे तुम जिन्दगी की आपा-धापी में
कही रख कर भुल गयी हो।
जो आतुर है
आज भी
सच होने को।

Rati said...

tumhe maalum he, us irani pari ko bhi cheenti se ppyar tha, tum padhana
ham ourate aksar cheentiyo ko pyaar karati hi hr

Rati said...

tumhe maalum he, us irani pari ko bhi cheenti se ppyar tha, tum padhana
ham ourate aksar cheentiyo ko pyaar karati hi hr

Yatish Jain said...

सच कहा आपने, किया हुआ सामने आता है कभी ना कभी. देख कर चलो...
www.yatishjain.com