Tuesday, March 29, 2011

प्यार

प्यार लौट आया है जिंदगी में
पूछा था तूमने ...
या कहा था
याद नही,
लेकिन सच , लौट तो आया है
सिरहाने रखी तस्वीर तुम्हारी
रातों को अक्सर जगाने लगी है...

आँख खुली तो देखा
लालटेन का कांच टूटा था
किनारे से,
तुमने समझाया था मुझे
कांच को हाथ से न उठाना
लग सकता है हाथों में
मैं मुस्कुराई थी
और तुम,
झांक रहे थे मेरी आँखों में...

हाँ तभी लगा
प्यार शायद लौट आया है...
....

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर!!!

अनिल पाण्डेय said...

बहुत ही अच्छी लगी कविता। प्रयोगधर्मी लेखक का रूप है यह।

vijay kumar sappatti said...

बहुत सुन्दर कविता ,शब्दों जैसे मुखर हो उठे है ...
बधाई
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html