तुम
बहुत अच्छे हो
बोलती हूँ कई बार
लेकिन
तुम यकीन नहीं करते
हमेशा की तरह
और
अपनी गर्दन झटक कर
मुहँ से बस
ऊहँ कह देते हो
मैं
यकीन दिलाने को
पूरे विश्वास से
तुम्हें देखकर
फिर बोलती हूँ
तुम....
बहुत अच्छे हो
तुम
फिर ना मानकर
दोबारा पूछने लगते हो
अच्छा हूँ....??
तो बताओ कैसे......???
मै
कुछ पल सोचकर
मुस्कुरा देती हूँ
और
प्यार से तुम्हारे
माथे को चूमकर
फिर बोलती हूँ
हाँ बस,
अच्छे हो.....
लेकिन तुम
ना मानने कि ठानकर
एक ज़िद्दी बच्चे से
इस बात पर अडकर
हट करते हुये,
झुझंलाकर
फिर बोलते हो
लेकिन बताओ तो कैसे,
कैसे मैं अच्छा हूँ......???
मैं असमंजस मे
उस स्थति मे आ पहुँचती हूँ
जहाँ मेरा मन
तुम्हें प्यार और अपना
सब कुछ
देने को व्याकुल
हो उठता है
मन
जो बहुत कुछ
कहना चाहता है लेकिन
दिमाग
उन सब शब्दों को
खोजता रह जाता है
जिनसे तुम्हें
यकिन हो जाये
कि सच
तुम बहुत अच्छे हो..
फिर तभी
तुम्हें यकीन
दिलाने को
मैं कह उठती हूँ
तुम,
तुम इतने अच्छे हो की
मेरी सांसों में
तुम्हारी ही खुशबू आती है
तुम,
तुम इतने अच्छे हो की
मेरे दिल से तुम्हारा नाम
इन रगो के कतरे कतरे मे
जा बसा है
तुम,
तुम इतने अच्छे हो की
मैं खुद मे तुमको
ढूढनें लगती हूँ
शायद
ये सब सुनकर
तुम्हें यकीन हो जाये
की सच
तुम बहुत अच्छे हो
इस दुनिया में
मौजूद सभी चीज़ों से...
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5 comments:
sangeeta , badhai, behad khoobsurat kavita he
kritya k e liye dogi?
Rati di
सुन्दर अभिव्यक्ति है ...
अरे वाह, बधाई हो, बहुत अच्छा लिखा,
मैं इतनी जल्दी पढता और मह्सूस करता गया कि, २ बार पढ गया।
आप लिखते रहिये यही कामना है।
शायद उसे यकिन नही आ रहा है,
अपने अच्छे होने का।
क्योंकि वो सोचता है कि
तुमसे मिलने से पहले तो
वो इतना अच्छा नही था।
उसके इतने अच्छें होने का कारण
कहीं तुम तो नही।
और फिर तुम्हारी आँखों में उसे
अपने अच्छे होने का
कारण मील गया होगा।
kyaaa baat he
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