पिछले दिनों अपने ब्लाग से दूर रही कोई अलगाव, नहीं नहीं ना तो अपने से और ना ही अपने ब्लाग से बस कुछ परिस्थितियों ने आकर यूँ घेरा कि मेरे विचार उन्हीं के इर्द गिर्द सिमट कर रह गये कई बार मन हुआ कि कुछ लिखा जाये, लेकिन तभी विचार सिगरेट के धूयें से आकर सिर्फ अपनी गन्ध छोङ जाते
मुझे लेखन से बहुत प्यार है, कई बार विचार शांत खरगोश से मेरे मन के गलीचे मे छलांग मारते है, और तब में उसकी सुदंरता का बखान अपने लेखन मे कर देती हूँ
अब इंतजार कर रही हूँ कि कब वो खरगोश दिखाई दे, तब तक तलाश जारी रहेगी
9 comments:
विचारों को 'सिगरेट के धूयें' की तरह 'अपनी गन्ध छोङ जाते' को छोड़ कर, गुलाब की महक बिखेरने की तरह सोचें - खरगोश तुरन्त दिखायी पड़ेंगे।
थोड़ा जल्दी ढूँढें खरगोश को.
इंतजार है.
-समीर लाल
इंतज़ार में हम भी हैं :-)
आप ढूँढ़ते खरगोशों को, हमें मिला न इक कछुआ भी
बढ़ी व्यस्ततायें इन्तनी हम भूल गये अपना चेहरा भी
चाय की प्याली से उठती हुई भाप ने चित्र बनाये
जिन्हें देख कर बदल रही हैं स्थितियां परिस्थितियां भी
ये खरगोश भी नस ज्लदी हाथ नही आते - कोशिश जरी रखें हमारी नेक तमन्नाएं आपके साथ हैं
आशा है आपका ये इन्तजार जल्द ही समाप्त होगा।
-प्रवीण परिहार-
सच कहा उन्मुक्त जी,
अगर गुलाब की महक को पकङ पाती तो शायद कुछ बन पङता लेकिन यहाँ का आलम आजकल कुछ और ही है|
समीर जी, प्रत्यक्षा जी, राकेश जी, शौयेब जी और प्रवीण जी
धन्यवाद इस इन्तजार के लिये|
Very nice
asal mai mai hindi type nahee janta kya aap ismai meri madad karengee ? hindi ka prem hee yaha aisa likne ko mazboor kar raha hai hari 09410451380
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