आजकल सभी जगह आज़ादी को लेकर सरगर्मी है, रेडियो से लेकर, समाचार चैनल और अखबारों तक हो भी क्यों नहीं हमारी आज़ादी को ६० वर्ष जो पूरे हो गये है कभी कभी लगता है, क्या वाकाई हम आज़ाद हुये हैं देखा जाये तो अभी भी कई सारे मसले हैं जिनकी तरफ देखकर यही अहसास होता है कि हम अब भी आज़ाद नहीं है फर्क बस इतना है कि पहले देश पर अंग्रेजों का शासन था और आज सरकार, सरकार के बाशिदों और पैसे वाला का शासन है
बङी गाङी चलाने वाला, छोटी गाङी चालक पर हावी दिखता है हद तो तब हो जाती है जब, २६ साल का नौजवान अपने पिता समान आदमी को एक तमाचा जङ देता है क्योकि उसकी गलती सिर्फ इतनी होती है कि वो रिक्शा चालक है और गलती से उसका रिक्शा नौजवान कि गाङी से टकरा गया
देश के निचले तबके के लोग (निचले तबके का इशारा उन गरीब लोगों कि ओर है जिनको दो वक्त कि रोटी जुटाना बहुत मुश्किल पङता है) अब भी गुलामों जैसी जिन्दगी बसर कर रहे हैं उनकी कहीं कोई पहचान नहीं, उनको और उनकी किल्लतों को सुनने वाला कोई नहीं
देश आज़ाद है, देश ने तरक्की भी की है, देश विदेशों मे अपनी अहम पहचान बना चुका है लेकिन इन सब के बावजूद इसी देश के निवासी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिये गुलामों जैसा व्यवहार भी सहन कर लेते है
देश क्या वाकई आज़ाद है???
9 comments:
मुद्दे तो सोचने वाले उठाए गए हैं । किन्तु केवल सरकार ही नहीं , हम सब मिलकर देश बनाते हैं । यदि हम नेताओं और बाहुबली लोगों से लड़ नहीं सकते तो इतना तो कर ही सकते हैं कि उन्हें अपने समाज में आदर ना दें ।
घुघूती बासूती
जब कोई आपकी तरह सोचता है तो अच्छा लगता है।
आवश्यक्ता है सोई मानवीय संवेदनाओं को जगाने की.
मगर स्वतंत्रता दिवस तो है ही और स्थितियाँ भी काफी बेहतर हुई हैं कि आज आप खुले आम इस आचरण के खिलाफ लिख बोल पा रही हैं और आवाज बुलंद कर पा रही हैं, इसलिये:
आपको स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई एवं स्वतंत्रता दिवस की ६० वीं वर्षगाँठ पर हार्दिक अभिनन्दन.
यूँ ही जारुगता की अलख बगैर मायूस हुए जलाये रखें-परिवर्तन को आना ही होगा. शुभकामनायें.
इतना जल्दी मायूस ना होईये, जब अच्छे दिन नहीं रहे तो हो सकता है ये दिन भी ना रहें।
आपको सपरिवार स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
॥दस्तक॥
संगीता जी...वंदेमातरम.
अति-सहनशीलता ने सारा भट्टा बिगाड़ दिया है.
और सच कहूँ हम बेसिकली बहुत वाचाल लोग हैं.बातें बहुत करते हैं...काम करने की बारी आए तो टाँय टाँय फ़िस्स.ये मेरी प्रिय सूक्ति है...आप भी पढ़ लें....
जब जब भी किसी को अपना अधिकार नहीं मिला
समझ लीजिये किसी ने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया.जय हिन्द.
देश क्या वाकई आज़ाद है???
देश को आजादी मिली इस भ्रम में देश के करोड़ों लोग हैं. दरअसल हमें बताया भी यही गया है. असल में हमें 60 साल पहले सिर्फ राजनैतिक आजादी मिली थी. आने वाले सालों में कई समुदायों को धार्मिक आजादी भी मिली. मगर देश के आम नागरिक को अब तक आर्थिक, वैचारिक, सामाजिक आजादी कहां मिली.
ध्यान दें आपके द्वारा उठाए गए तमाम मुद्दे इसी से जुड़े हैं. इनके पीछे सीधे तौर पर आर्थिक असमानता, वैचारिक गुलामी और सामाजिक विषमता सीधे तौर पर जिम्मेदार है.
इसके अलावा वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन का अधूरा फलसफा भी गड़बडियां लेकर आया है. सिर्फ पूंजी का ग्लोबलाइजेशन हुआ, श्रम का नहीं. बाजार की घुसपैठ हुई तो वह सामाजिक समरसता पर हावी होता चला गया. समाज कमजोर हुआ और व्यक्तिवाद मजबूत. निजता इतनी हावी हो गई कि समाज तो क्या परिवार भी गौण हो गया.
लिखा बहुत कुछ जा सकता है, पर फिर कभी.
आज भी कई लोग है, जो यह मानते है कि आज भी देश को गाँधी, नहरु, पटेल, और भगतसिंह जैसे लोगो की आवश्यकत्ता है पर वे यह भी चाह्ते है कि वो गाँधी, भगतसिंह उनके घर में नही पडोसी के घ्रर पैदा होना चाहिए।
संगीता जी आपने जिन समस्याओं कि ओर ध्यान कराया है वह निसंध्य ही अत्यंत विचारणीय है। कई लोग इस पर विचार भी करते है और परन्तु केवल विचार ही है। जब तक हम में से प्रत्येक इस विचार को आचरण में नही लायेगा तब तक यह केवल एक विचार ही है।
यदि हम ऎसे विचारों को स्वंय के आचरण में ढाल कर औरों को ऎसा करने के लिए प्रोत्साहित कर सके तो संभवत: हम इस देश के कुछ काम आ सकेगें और सही अर्थो में स्वतंत्रता दिवस मना सकेगें।
जय हिन्द
क्या पहले हम अपने मन में छाने वाले बुरे विचारों से आजाद हो चुके हैं?
सोचना अच्छी बात है. कहना भी अच्छी बात है. पर करना भी जरूरी है. मुझे लगता है जब हम समाज में फैली बुराइयों की बातें करते हैं तब अपने आपको उनसे अलग कर लेते हैं. पर क्या हम उन से अलग हैं? क्या हम भी उस सबके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? सुधार का कोई भी कार्यक्रम ख़ुद से शुरू होना चाहिए. जनता, सरकार, पुलिस, मीडिया, न्यायपालिका सभी को मिलकर काम करना होगा.
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