Thursday, June 05, 2008

एक सुबह

टिपटिप, टिपटिप, टिपटिप, पेङ सारे नहाये हुये, कुछ ज्यादा ही हरे और चहक रहे हैं माँ ने आज कटहल बनाया है, बेसन में संधा हुआ, महक पूरे घर से शायद पङोस के शर्मा जी के घर तक जा रही है, दीवारे भीगी हुई अपने रंग से थोङी फीकी, सीमेंट और सफेदी कि सोंधी खुशबू, मन कर रहा है खा जाऊ जैसे बचपन मे दीवारें कुरेद कर खा जाया करती थी और माँ बहुत डांटती मैं अपने रूम कि खिङकी से नीचे झाँक रही हूँ माँ कई बार पूछ चुकी है, आज आफिस नहीं जाओगी क्या? लेकिन मेरा एक ही जवाब, बस अभी उठती हूँ, थोङी देर और...

पास ही के बस स्टाप पर रंगीन छतरियाँ, नीली, लाल, गुलाबी लेकिन काली कुछ ज्यादा हैं कोई अकेले ताने खङा है, किसी के नीचे दो लोग तो कोई तीन भी हैं बीच वाला तो सुरक्षित, लेकिन आजू-बाजू दोनों जन किनारे से भीग गये हैं अरे वो तो गुप्ता जी है, पैन्ट की मोहरी अपनी जुराबों मे दबाये, बैग को बगल में छिपाये, अजीब सा मुँह बनाकर खङे है, जैसे बारिश नहीं कहीं कोई पहाङ टूट पङा हो जगह जगह पानी के चहबच्चे बन गये है, मिसेज गुलाटी भी अपनी साङी को एक फिट ऊपर उठाये संभल-संभल कर बस स्टाप कि तरफ जा रही हैं, ओह हो... ये गाङी वाले भी ज़ूम से निकाल ले जाते है ज़रा भी नहीं सोचते सङक पर चलने वालो का... छपाक से पानी के छीटें पङ गये मिसेज गुलाटी कुछ भुनभुना रही हैं, बारिश थोङी और बढ गई है

बचपन की कविता याद आ रही है,
रेन रेन गो अवे, कम अगेंन अनदर डे
डैडी वन्स टू प्ले, रेन रेन गो अवे...

लेकिन आज मन है

ऐ बावरी पवन, खीच के ला
मेघा सावन

हम भी आज भीगेंगे
नाचेगे बारिश मे
ता ता धिन...
ऐ बावरी पवन, खीच के ला
मेघा सावन,

दौङ धूप में निकले दिन
खबर नहीं कब आईं तुम
बचपन के दिन बुलाते है
फिर से कर लें कुछ
मस्ती हम...
ऐ बावरी पवन, खीच के ला
मेघा सावन

9 comments:

Anonymous said...

kya kahun,man pura bhig gaya,bahut hi khubsurat alfazon se saji sundar kavita

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन-गद्य भी और पद्य भी.

दीवार तो कभी मौका देखकर खूरच कर खा ही लेना-बचपन याद आ जायेगा फिर से. अब तो कोई डांटेगा भी नहीं. :)


शुभकामनाऐं.

Arun Aditya said...

आपकी भाषा में लालित्य है। बधाई।

Rajesh Roshan said...

जिस रवानगी से आपने लिखा है वो बेहद अच्छा है. बारिश की परेशानियों के बीच मेघा को बुलाना. कविता अच्छी है.

कुश said...

सुंदर भाव

Anonymous said...

Bahut hi accha varnan kiya hai barsaat ka....sach me vo mitti ki khusbhu aur usse khurach kar khane ki lalsaa jag gayi :-)

Bachpan ke din yaad dila hi diye....

With luv~~~Bhawna

बालकिशन said...

बरशो रे मेघा बरशो!
बहुत बेहतरीन लिखा आपने.
बधाई.

Kumar Gaurav said...

what an innovation////////////////////////

neelima garg said...

reminding the beauty of rain......