Thursday, August 14, 2008

धर्म के नाम पर

श्रीनगर में कई दिनों से बेकाबू हालात हैं, कल इन सबका असर पूरे भारत पर भी दिखा. "विश्व हिन्दू परिर्षद" ने पूरे भारत मे बंद का आहवान किया. कई मरीज़ों ने सङको पर ही दम तोङ दिया, बहुत लोग परेशान हुये. वैसे प्रदर्शन में शामिल कई लोगो को शायद पता भी ना हो कि ये प्रदर्शन किसलिये है. मुझे लगता है इस तरह के "प्रदर्शन" "नारे-बाज़ी" सरकार को नहीं आम जनता को परेशान करने के लिये होते हैं. धर्म के नाम पर अधर्म होते है, फिर भी ये सब सीना तान कर "भारत माता की जय" कहते नहीं थकते.

धर्म के नाम पर
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मंदिर गिरा, मस्जिद गिरी और गिरा गुरूद्वारा
धर्म सभी का एक है, लगता फिर भी ये नारा

लगता है ये नारा लेकिन, समझे कितने भाई
हम सब बंदे नेक हैं, कहते सब दंगाई

नेकी धर्म सब भूल कर नाम प्रभू का लेते
राम, गुरू कि धूनी पर प्राण सभी के लेते

कोई हिन्दुत्व का चोला पहने, नोचे गैर शरीर
कोई जिहाद कि गूँज मे, भीचें किसी की चीख

धर्म की लगाई आग में जलते कितने लोग
बेघर हुये कई तो, मरे कितने निर्दोष

बच्चों की उस चीख पर सुना एक आतंक
विधवाओं के मुख पर भी दिखा एक द्वंद

एक कवि के रूप मे, हम इतना ही जानें
ना कोई इमान है इनका, ना ये धर्म पहचाने

करते वो सब ढोंग हैं, धर्म का बनने रक्षक
लेकिन धर्म कि आङ मे, बनते सबके भक्षक

बात ये एक सत्य है, जो हम कभी ना भूलें
"धर्म नहीं सिखाता आपस में बैर रखना"
धर्म सभी का एक है आप सब भी कबूलें
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10 comments:

admin said...

यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ पर धर्म के नाम पर ही देश का बंटाधार किया जाता है।

राज भाटिय़ा said...

सभी धर्म वालो ने मिल कर इस देश को आजाद करवाया था,ओर आजादी अपने बच्चो को सोंप कर वो तो शहीद हो गये, ओर वो नालायक बच्चे अब अपने अपने धर्म का झाण्डा ले कर इस आजादी को खो कर अपने बच्चो को फ़िर से गुलामी देना चाहते हे,धन्यवाद एक अच्छी पोस्ट के लिये

Udan Tashtari said...

सटीक!!बहुत बढ़िया!

PREETI BARTHWAL said...

एक सुन्दर रचना के लिए बधाई।
स्वतंत्रतादिवस के अवसर पर बधाई

travel30 said...

Jaha par bhi Kattarwaad aata hai mujhe usse sakth nafrat hai...

Bahut acha lekh

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Unknown said...

संगीता जी, बात आपने सही कही है. धर्म के नाम पर काफ़ी कुछ ऐसा हो रहा है जिस की इजाजत धर्म नहीं देता. पर समस्या यह है कि प्रदर्शनों की निंदा तभी की जाती है जब हिन्दुओं का कोई संगठन उसमे शामिल होता है. अमरनाथ जी कि यात्रा के दौरान यात्रियों को सुविधा देने के लिए जमीन के स्थानान्तरण की बात जब हुई तो कश्मीर में खूब प्रदर्शन हुए पर कितने लोगों ने उसकी निंदा की? पर जब जम्मू में प्रदर्शन हुए तो निंदा करने वालों की लाइन लग गई. अगर समय मिले तो मेरे इस ब्लाग पोस्ट पर जाइयेगा:
http://sab-ka-maalik.blogspot.com/2008/09/blog-post.html

सुशील छौक्कर said...

बहुत ही उम्दा लिखा धर्म पर।

Khem Singh Manral said...

hi sangeeta manral
I am khem manral to (New Delhi)
agar hum baat bharatachar ki kare to jitna bole utna kam h
ab baat batane se nahi kar dikhane se hoga pahle humne sirf apne aap ki sahi pahchan honi chahiye kyuki hmare andhar hi vo sab kuch h jo hame jinda lash bana deta h aro ko kya kahe jab khud sahi na ho
thanks

Anonymous said...

धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है ।
धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
ईश्वर के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म है । अधर्म के लिए कर्म करना, अधर्म है ।
कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, तप, भक्ति, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjri

Anonymous said...

वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी आम मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।