Tuesday, June 29, 2021

"ख़ुशी के आँसू "


आज ऑफिस घुसते ही बॉस ने पूरी फेहरिस्त पकड़ा दी.. ये रिपोर्ट, वो एनालिसिस, स्ट्रेटेजी प्लान वगैरह वगैरह। . मन तो हुआ काश तबियत ठीक न होने का बहाना करके आज छुट्टी ही मार लेती तो अच्छा था.. खैर कहीं न कहीं ये तो मन में था ही की नार्थ सेल्स मीट है अगले दो दिन में तो काम का प्रेशर तो होगा ही.. बॉस की फरमाइश तो पूरी करनी ही थी साथ ही सुबह से इतने फ़ोन कॉल्स आ रहे थे टीम के.. मैडम मेरा अचीवमेंट भेज दो, मैडम मेरा ईयर टिल डेट फिगर कितना हुआ.. मैडम मेरा रोडमैप प्लान जो भेजा था वह फिर से भेज दो मेरे इनबॉक्स में कहीं गुम गया है...  हर बार हर महीने सब कुछ भेजने के बाद भी इनको जब जरुरत पड़ती है मिलता क्यों नहीं.. मन मसोस के रह गयी कमबख्त ये सेल्स वाले इतने अनऑर्गनिज़ेड क्यों होते है..  

सुबह के ९:३० से कब १ बज गए पता भी नहीं चला.. सीमा ने फ़ोन कर के कहा चल आजा लंच टाइम हो गया.. मैंने बोला तू चल मैं आई, वह झल्ला के बोली यार हद है काम १५ मिनट बाद भी हो सकता है जल्दी आ... मैं सोच रही थी बस ये फाइल और निपटा लूँ फिर चलती हूँ.. तभी उसका फिर कॉल आ गया.. इस बार कॉल वेटिंग पर था.. सुबह से मेरा फ़ोन कॉल सेण्टर जो बना हुआ था.. अब फ़ोन अटेंड करूँ या काम करूँ.. दिमाग का दही हो रहा था. 

फिर तीसरी बार उसने कॉल किया.. क्या यार वेट कर रही हूँ.. और कॉल बैक नहीं होता तुझ से जल्दी आ.. आज तेरे मनपसंद गोभी के पराठे लाई हूँ.. मैंने कहा बस बस २ मिनट प्लीज स्टार्ट मत करना मैं आ रही हूँ.. अब गोभी के पराठे वह भी सीमा के हाथों के मिस करना मतलब स्वाद को जानबूझ कर ठोकर मारना... तुरंत हाथ धोये और पहुंच गई कैफेटेरिया।। सीमा भी इंतज़ार में थी.. चल आजा मुझे भी बहुत जोरों से भूख लगी है.. 

पहला निवाला तोड़ते ही मेरा फ़ोन फिर बज उठा.. सीमा ने चिढ़ के कहा ये लोग भी ना लंच भी चैन से नहीं करने देंगे.. मैंने कॉल रिसीव कर लिया.. दूसरी तरफ तुषार था.. क्या मैडम आपने मेरा फिगर तो दे दिया लेकिन मेरी टीम का क्या.. मैंने चिढ़ के कहा तुम लोग भी ना कोई फाइल सेव करके रखते हो.. भेजा था मंथ एन्ड पर...  मैडम प्लीज दोबारा भेज दो पीपीटी में डालना है ठीक है कहकर मैंने फ़ोन काट दिया.. 

वाह सीमा आज तो गज़ब स्वाद बने है क्या नया डाला है.. नहीं तो वही रेसिपी है.. बहुत स्वाद है यार... मेरा फ़ोन फिर बज उठा.. इस बार सीमा ने फ़ोन बिना उठाये दूसरी तरफ रख दिया.. पहले खाना खा ले फिर बात करना.. ये लोग ऐसे ही परेशान करते रहेंगे शाम तक.. मोबाइल पे आने वाला फ़ोन किसी नंबर से था.. इसलिए मैं भी बेपरवाह हो गई.. लेकिन फिर दोबारा उसी नंबर से कॉल आया.. मैंने कहा यार कुछ अर्जेंट न हो देखने दे किसका है.. सीमा बोली चल ना फिर आएगा अर्जेंट हुआ तो.. तू खाना खा.. लेकिन तीसरी बार फिर से कॉल आने पर मैंने रिसीव कर लिया.. ये ऑफिसियल कॉल नहीं था.
 
दूसरी तरफ से आवाज़ आयी हेलो आप संगीता बोल रही है.. मैं सौरभ.. मैंने कहा जी बताइये।। वेदांत आपका बेटा है मैंने कहा बोलो क्या हुआ.. जी मैं ४ बिशम्बर दास रोड पे खड़ा हूँ और वेदांत अपनी स्कूल ड्रेस में यहाँ रोड के किनारे खड़ा रो रहा है.. इतना सुनते ही मानो  मेरे तो पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी.. वेदांत मेरा ४ साल का बेटा वो वहाँ कैसे खड़ा है.. मैं बहुत घबरा गई.. सौरभ ने कहा आप घबराइए नहीं मैं हूँ उसके पास आप जल्दी आ जाईये.. मैंने आव देखा न ताव स्कूटर स्टार्ट किया और भागी चली गई ४ बिशम्बर दास रोड सीमा भी पूछती रह गई हुआ क्या.. 

१० मिनट में मैं वहां थी.. मुझे देखते ही  बेटा गले लग के खूब रोया... सौरभ के साथ २-४ लोग और भी खड़े हो गए थे.. अब माजरा समझ में आया स्कूल वैन ने गलती से वेदांत को वहां उसका स्टॉपेज समझ कर उतार दिया था.. शायद वैन कंडक्टर नया  था... आज एक बहुत बड़ा हादसा होते होते बच गया.. मैं सौरभ का कैसे शुक्रिया अदा करूँ।। पूरी उम्र भर में ये बात नहीं भूल सकती.. तब से लेकर आज तक मेरे फ़ोन पर कोई भी कॉल उनटेंडेड नहीं रहती.. 

ख़ुशी के आसूं थे जो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.. 

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