ये बात अब से करीब 30 साल पहले की है, आज बैठे बैठे पता नहीं कहाँ से वो दिन याद आ गए.. कभी कभी लगता है की कितना ठहराव था उस समय में.. सभी लोग फुरसत में होते थे और बोरियत क्या होती है ये वाकई महसूस होता था.. आज कई मर्तबा दिल करता है की काश वो बोरियत वाले दिन फिर से क्यों नहीं आ जाते.. सब कुछ मशीन सा लगता है जैसे कारखानों में रखीं बड़ी बड़ी मशीनें बस एक धुन से लगभग एक सी आवाज़ निकालती दिन रात चलती रहती है.. खरड़ खरड़ खरड़ खरड़.....
हम लोगों की लाइफ भी करीब करीब ऐसी ही हो गई है एक दम सेट पैटर्न , खैर ये तो रही इस ज़माने की बात तो वाकिया कुछ ऐसा था..
नीचे अम्मा टीवी से चिपकी बिना
लग रहा था कलाकार टीवी से नि
आज २६ जनवरी है, अम्मा नाश्ता पा
सिन्हा जी से बाबूजी कि पुरानी
आज सुबह से पिंटू बहुत खुश था बाहर अंदर कितने चक्कर लगाता कभी घड़ी देखता, कभी माँ को पूछता खाना कब बनेगा.. माँ भी सोचती आज कहाँ जा रहा है बहुत जल्दी में है, तो बड़े खुश होकर बताता आज केबल वाला सनी देओल की घायल फिल्म लगाने वाला है माँ, आज तो मज़ा ही जाएगा माँ थोड़ा उदास होकर बोलती कितने बजे ख़त्म होगी फिल्म अपने बाबू जी के घर आने से पहले लौट आएगा ना... हाँ हाँ माँ तू चिंता मत कर बाबू जी को कुछ नहीं पता लगेगा.. बस यहाँ वहां जल्दी जल्दी खाना खाया, यहाँ वहां हाथ धोये और भागा जैसे कोई ट्रेन छूटने वाली हो.. माँ पीछे पीछे दौड़ कर चिल्लाते हुए बोलती जल्दी आना, बाबू जी के आने से पहले.. हाँ हाँ माँ तू चिंता मत कर..
शाम के 6 कब बजे पता ही नहीं चला, बाबू जी घर आ चुके थे, घर के अंदर घुसते ही पहला प्रश्न यही दागा पिंटू कहाँ है, माँ भी क्या बोलती बोली हाँ कुछ सामान लेने भेजा है बाज़ार आता ही होगा, ये कोई समय है बाजार भेजने का दिन भर क्या करते रहते हो घर में, माँ की चिंता अब बढ़ने लगी थी.. बार बार नज़ारे आंगन के गेट की तरफ मुड़ जाती, मन ही मन इतना गुस्सा आ रहा था पिंटू के उपर कितना लापरवाह है इतनी बार बोलने के बाद भी कोई चिंता नहीं, आज तो पक्का डांट के साथ मार भी पड़ेगी.. अब तक 6 : 30 बज चुके थे और अँधेरा भी घना हो गया था.. बाबू जी ने फिर पूछा कहाँ भेजा है बाजार ही गया है न.. अब इस बार माँ से झूठ नहीं बोला गया और बता ही दिया दिन से गया है केबल में घायल फिल्म आनी थी तो सिन्हा जी के घर ही गया होगा फिल्म देखने.. बाबू जी का पारा बढ़ने लगा आने दो आज इसको घर इसको तो घायल मैं करता हूँ.. अब 7 :00 बज चुके थे... दिन का गया लड़का अब तक घर नहीं लौटा, गुस्से के साथ साथ चिंता भी खाये जा रही थी, बाबू जी से अब घर पर रुकना मुश्किल हो रहा था.. बोल ही उठे मैं देखकर आता हूँ माँ ने कहा रुको में भी चलती हूँ उनको चिंता थी की कहीं सिन्हा जी के घर से भी पीटते पीटते न लाएं... सिन्हा जी के घर पहुंचे तो वहां ताला लगा था पड़ोस में पूछा तो मालूम हुआ वह तो दो दिन से घर पर नहीं हैं..
अब तो गुस्सा नहीं सिर्फ चिंता थी कहाँ गया होगा.. किन किन लोगो के घर कलर टेलीविज़न है और केबल कनेक्शन हैं.. माँ जिनको जानती थी सबके नाम गिनाये फिर ये सोचा गया उन सबमें से किन के घर जा सकता है.. और फिर दो चार घर शॉर्टलिस्ट किये.. एक एक कर सब घर तलाशे लेकिन पिंटू वहां नहीं था माँ तो बिलकुल रोने को थी.. अब क्या करें कहाँ जाए.. थक हारकर घर आये तो पिंटू घर आ चुका था बाबू जी ने देखते ही एक चपत लगा दी और डांटते हुए पूछा कहाँ गये थे.. बाबू जी वह मिश्रा जी के यहाँ, माँ ने सीधे यही पूछा उन्होंने कब लिया कलर टेलीविज़न, माँ पिछले हफ़्ते।। हे भगवान् बस अब हम ही रह गए हैं तेरे बाबू जी कुछ नहीं दिलाने वाले.. इस वाकिये से तो बाबू जी को भी लगा अब तो टेलीविज़न लेना ही पड़ेगा वह भी केबल कनेक्शन के साथ..
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