Monday, July 04, 2022

 तुम 


तुम्हारी गरीबी जग ज़ाहिर सी 

फटे कोट में लगे पैबंद की तरह 

उधड़ जाती है 

तूफ़ानअकालबाढ़  और महामारी के वक्त 

कितने ही साल फिर और लगेंगे 

सीने में उसको 

चाक-चौबंद  बांधते हो तुम अपनी झोपड़ी 

हर साल चौमास की रातों को काटने के ख़ातिर 

फिर एक रोज़ 

निसर्गअम्फान आते है अफ़रा - फ़री में  

और उड़ा ले जाते हैं सपने तुम्हारे

तुम कितने मेहनती हो ईमानदार भी 

सोचते होगे कई मर्तबा क्या इसलि 

गरीब हूँ 

छोटी छोटी ख़्वाहिशें और ढ़ेर सा सुकून 

खुशियाँ तुम्हारी कितनी मासूम सी 

उमड़ ही आती हैं कभी भी 

छोटे बच्चे की मुस्कान की तरह

तुम्हारा धैर्यसमर्पण और जीने की चाह 

उत्साहित करती हैलड़ना सिखाती है 

चुनौतियों सेप्रेरित करती है जीने के लिए

No comments: