Monday, July 04, 2022

Lockdown 2020

 


इन दिनों हर शाम  छतें मेरे मोहल्ले की 

गुलज़ार सी है 
जो सूनापन 
रहा करता था यहाँ 
सालों दर सालों
वो कैद हो जाता है ठीक वैसे ही 
जैसे हम रुके हैं अपने आशियाने में 
इन दिनों 

चिड़ियों की आवाजें  
साफ़ सुनाई देने लगीं हैं आजकल 
आसमां भी  कुछ ज्यादा नीला लगता  है 
जैसा  दिखता था मुझे मेरे बचपन में पहाड़ों पर 
यकीन नहीं होता 
क्या ये मेरा ही शहर है ??

लूडो, कैरम , शतरंज की बिसाते बिछने लगी है
किताबें जिनपर गर्त हुआ करती थी
सफे उनके पलटने लगें हैं
पकवान जो आर्डर 
किये जाते थे एक क्लिक पर
हाथ आजमाइश उन पर होने लगी 

सबकुछ  थम गया है 
मशीनें, गाड़ियां और आदमी भी 
कुदरत को रौंदते सोचा ना था कभी इसने 
की ऐसा मंजर भी कभी मुकम्मल होगा 

इंसान कितना बेशर्म और लालची है 
अहसास हुआ इस दरमियाँ 
आज जब बात आयी 
अपनी जिन्दगी पर
तो घरों में दुबका पड़ा है 

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