Monday, July 04, 2022

सपने


सपने आने लगे हैं बहुत इन दिनों 

तुमने कहा था नींद कमज़ोर हो 
तो आ ही जाते हैं 
कुछ भी ऊलजलूल 
दिमाग की उपज सपने 

तुम कहीं नहीं थे उन में दूर दूर तक 
कुछ याद रहे कुछ भूल गयी 

कल रात
दो साल पहले, की हुई बात 
आयी सपने में 
इस बार सब चुप थे सिर्फ मैं बोल रही थी 
कुछ भी ऐसे ही ऊलजलूल 
तुम्हें बताया तो तुम बोले 
आजकल बहुत बोलने लगी हो 
शायद इसलिए 

नींद पूरी नहीं हुई कल रात भी 
दिमाग ढूंढता रहा कुछ 
सफ़ेद बादलों  के बीच 
हंसों का जोड़ा 

Gaint Wheel झूला 
लबालब पानी से भरे तालाब के बीचोंबीच 
वो रहट की तरह गोल घूम घूम कर 
हर डब्बे में  पानी भरता और ऊपर पहुंचते ही 
सारा पानी उड़ेल देता 

सुबह उठी तो बहुत थकी हुई थी 
जैसे शायद थक जाता है कोई मज़दूर 
पत्थर ढो-ढो  कर
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