सपने आने लगे हैं बहुत इन दिनों
तुमने कहा था नींद कमज़ोर हो
तो आ ही जाते हैं
कुछ भी ऊलजलूल
दिमाग की उपज सपने
तुम कहीं नहीं थे उन में दूर दूर तक
कुछ याद रहे कुछ भूल गयी
कल रात
दो साल पहले, की हुई बात
आयी सपने में
इस बार सब चुप थे सिर्फ मैं बोल रही थी
कुछ भी ऐसे ही ऊलजलूल
तुम्हें बताया तो तुम बोले
आजकल बहुत बोलने लगी हो
शायद इसलिए
नींद पूरी नहीं हुई कल रात भी
दिमाग ढूंढता रहा कुछ
सफ़ेद बादलों के बीच
हंसों का जोड़ा
Gaint Wheel झूला
लबालब पानी से भरे तालाब के बीचोंबीच
वो रहट की तरह गोल घूम घूम कर
हर डब्बे में पानी भरता और ऊपर पहुंचते ही
सारा पानी उड़ेल देता
सुबह उठी तो बहुत थकी हुई थी
जैसे शायद थक जाता है कोई मज़दूर
पत्थर ढो-ढो कर
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