अनकही यादें...
अनकही यादें - ०१**************** मुझे आज भी अपनी किताबों से भरी अलमारी के सामने तुम्हारा बिंम्ब नजर आने लगता हैजहाँ तुम अपनेपँजों के बल पर उचककर किताबों के ढेर में अपनी पंसदीदा किताब को तलाशते घंटों बिता देती थी और मैं तुम्हारी ऐङी पर पङी गहरी, फटी दरारों को देखता रहताअनकही यादें - ०२****************गये पतझङ मेंमैं तुम्हारे आँगन मे खङे पीपल के पीले गिरे पत्तों से चुनकर एक सूखा पत्ता उठा लाया था
वो आज भी मेरे पास मेरी पसंदीदा किताब के पेज नम्बर २६के बीच पङामुझे परदेस मेंतुम्हारा प्यार देने को सुरक्षित है
1 comment:
sangeeta ji, aapki rachnaye bahut sashakt hai, bhawnaon ka bahut sundar aur adbhut chitran hai aapki kavitaaon me,
aap meri badhai sweekar karen
deepak
deepakmodi2001@yahoo.com
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