Thursday, March 09, 2006

अनकही यादें...


अनकही यादें - ०१
****************
मुझे आज भी
अपनी किताबों से भरी
अलमारी के सामने
तुम्हारा बिंम्ब
नजर
आने लगता है
जहाँ तुम अपने
पँजों के बल पर
उचककर
किताबों के ढेर में
अपनी पंसदीदा
किताब को तलाशते
घंटों बिता
देती थी
और मैं तुम्हारी
ऐङी पर पङी
गहरी, फटी
दरारों को देखता रहता


अनकही यादें - ०२
****************
गये पतझङ में
मैं तुम्हारे
आँगन मे खङे
पीपल के
पीले गिरे पत्तों से
चुनकर
एक सूखा पत्ता
उठा लाया था

वो
आज भी
मेरे पास
मेरी पसंदीदा
किताब के
पेज नम्बर २६
के बीच पङा
मुझे
परदेस में
तुम्हारा
प्यार देने को
सुरक्षित है


1 comment:

Anonymous said...

sangeeta ji, aapki rachnaye bahut sashakt hai, bhawnaon ka bahut sundar aur adbhut chitran hai aapki kavitaaon me,
aap meri badhai sweekar karen
deepak

deepakmodi2001@yahoo.com