सुन्दर
अरे वाह!! कब घूम आईं आप इलाहाबाद?
सँगीता,सुँदर चित्र है ...पँख फडफडाते पक्षी छवि को एक जीवित अहसास दे रहे हैँयही तुन्हारे इनर वोएस का कवि है जिसने ये द्रश्य देखकर, सदा के लियेइस चित्र के जरिये,प्रस्तुत किया है ! बहुत स्नेह के साथ,-- लावण्या
बहुत खुबसूरत
बहुत सुन्दर चित्र है संगीता जी बिल्कुल एक कवि की कल्पना की तरह उड़ान भरते... सुनीता
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5 comments:
सुन्दर
अरे वाह!! कब घूम आईं आप इलाहाबाद?
सँगीता,
सुँदर चित्र है ...पँख फडफडाते पक्षी छवि को एक जीवित अहसास दे रहे हैँ
यही तुन्हारे इनर वोएस का कवि है जिसने ये द्रश्य देखकर, सदा के लिये
इस चित्र के जरिये,प्रस्तुत किया है !
बहुत स्नेह के साथ,
-- लावण्या
बहुत खुबसूरत
बहुत सुन्दर चित्र है संगीता जी बिल्कुल एक कवि की कल्पना की तरह उड़ान भरते...
सुनीता
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